Thursday, 7 May 2020

डिमरी जाति का इतिहास




गढ़वाली जाती का इतिहास बहुत विस्तृत है।  गढ़वाल का इतिहास धार्मिक एवं सांस्कृतिक रुप से प्राचीन रहा है लेकिन ब्राह्यणो के रूप में इसका  सीधा सीधा उद्धभव 9 वीं शताब्दी के बाद प्रारम्भ होता है इसी समय गढ़वाल में भारत के अन्य भागो से आये ब्राह्मण जातियों का आगमन हुवा।  अधिकतर यहाँ अपनी मूल जाती के नाम से निवाश करने लगे जबकि कुछ जिन गॉंवो में बसे उन्हीं  गॉंवो के नाम से उनकी जातियाँ प्रसिद्ध हुई।

आदि गुरु शंकराचार्य ने भारत की चारो दिशाओं मे जिन चार धामों की स्थापना की थी बद्रीनाथ उनमे से एक है।  शंकराचार्य केरल के कालड़ी गांव के रहने वाले थे  हिन्दू धर्म के पुनरुथान ओर हिन्दू धर्मवलम्बियो को एक जुट करने के लिए शंकराचार्य जी ने यह ब्यवस्था बनायी कि उत्तर-भारत के मंदिरों मे दक्षिण भारत का पुजारी और दक्षिण भारत के मंदिरो मे उत्तर-भारत का पुजारी होगा। भगवान् बद्रीनारायण के मुख्य पुजारी केरल के नम्बूरी जाति के ब्राह्मण होते हैं इन्हे शंकराचार्य का वंशज माना जाता है और ये रावल कहलाते हैं। बद्रीनाथ मे  पूजा रावल करते हैं वही स्थानीय डिमरी समुदाय के ब्राह्मण इनके सहायक पुजारी होते हैं।

डिमरी मूलरूप से दक्षिण भारतीय हैं जो शंकराचार्य जी के साथ सहायक अर्चक के तौर पर गढ़वाल मे आये और वापस नहीं गए। ये कर्णप्रयाग के पास  डिम्मर गांव में रहने लगे इसीलिए डिमरी कहलाये। भगवान् बद्रीनारायण की प्राचीन परम्पराओ निभाने मे आज भी डिमरी पंचायत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।  भगवान् बद्रीनारायण  के कपाटों के खुलने पर गाड़ू घड़े की रवानगी डिमरी बारीदार ही करते हैं।  बद्रीनाथ मे  भोग लगाने का अधिकार सिर्फ डिमरी पंडतों को होता है। 

डिमरी मूलरूप से द्रविड़ ब्राह्मण हैं जो कर्नाटक के संतोली से आकर गढ़वाल के चमोली जिले मे कर्णप्रयाग के पास पट्टी तली चांदपुर के डिम्मर गांव मे बस गये।  गांव के नाम पर ही यह जाति डिमरी कहलायी।  यह सरोलाओ  की मुख्य जाती है जिसे पंडित राजेन्द्र बलभद्र ने बसाया था। डिम्मर गांव मे बसे डिमरी समुदाय के कुछ सदस्य डिम्मर गांव  से विस्थापित होकर निकटवर्ती गांवो जैसे काण्डा, लंगासू, कालेश्वर और अन्य गांवो मे बस गए। गढ़वाल में ब्राह्मण जातियां  मुख्य रूप से तीन भागो मे बांटी गयी है:-
1.  सरोला
2.  गंगाडी
3.  नाना

सरोला और गंगाडी 8 वीं और 9 वीं शताब्दी में मैदानी भागों से गढ़वाल मे आये थे।  सरोला ब्राह्मण पंवार शासक के पुरोहित के रूप मे गढ़वाल आये थे। गढ़वाल मे आने के बाद सरोला और गंगाड़ी समुदाय के लोगो ने नाना गोत्र के ब्राह्मणो से विवाह किया।  सरोला ब्राह्मणो द्वारा बनाया गया भोजन सभी लोग खा लेते है जबकि गंगाड़ी जाति का अधिकार केवल अपने सगे -सम्बधियों तक सीमित होता है। 


श्री बद्रीनाथ मंदिर के बारे मेँ जानकारी के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें ।

https://badrinathdhamuk.blogspot.com/

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